ज़िंदगी में गम-ख़ुशी, राग-विराग हैं बहुत
गणित की तरह जोड़-घटा, गुणा-भाग हैं बहुत ।
उतना ख़ूबसूरत नहीं वो जितना सोचा था
चेहरा लाज़वाब पर दिल में दाग़ हैं बहुत ।
वफ़ा के फल, फूल यहाँ कहीं मिलते ही नहीं
हर-सू गुलशन, बगीचे, बाग़ हैं बहुत ।
कैसे छुपाऊँ, तेरे बिना कैसे कटे मेरे दिन
सुर्ख आँखें, चेहरा उदास, सुराग़ हैं बहुत ।
आफ़ताब के मुक़ाबिल कोई क्या होगा
यूँ रौशनी देने के लिए चिराग़ हैं बहुत ।
खुश रहने का ' विर्क ' बस हुनर होना चाहिए
दीवाली, दशहरा, तीज और फाग हैं बहुत ।
दिलबाग विर्क
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित काव्य संग्रह " सतरंगे ज़ज़्बात " से
7 टिप्पणियां:
खुश रहने का हुनर चाहिये!
तारीफ़ समझें कि शिकायत!
खूब!!
उतना ख़ूबसूरत नहीं वो जितना सोचा था
चेहरा लाज़वाब पर दिल में दाग़ हैं बहुत ।
लाजवाब गजल।
रचना बढ़िया है |चेहरा सुन्दर हो भी तो क्या यदि मन में जहर भरा हो |
लाजवाब
दूर के ढोल सुहावने होते है . अच्छी गजल .
उतना ख़ूबसूरत नहीं वो जितना सोचा था
चेहरा लाज़वाब पर दिल में दाग़ हैं बहुत ।
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
आफ़ताब के मुक़ाबिल कोई क्या होगा
यूँ रौशनी देने के लिए चिराग़ हैं बहुत ।
बहुत सुंदर।
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