हाँ ! मैं मजदूर हूँ
क़लम का मजदूर
मगर मजदूरी करता हूँ शौक से
शौक का
कोई मेहनताना देता है कहीं
मजदूर हूँ तो
वक़्त तो जाया करता ही हूँ
इस मजदूरी के लिए
सिर्फ़ वक़्त ही नहीं
पैसा भी
क्योंकि लिखता हूँ तो
चाहता हूँ छपना
और कौन छापता है किसी को
मुफ़्त में
जेब ढीली करके ही
खुद की लिखी पुस्तक
आती है अलमारी में
मेहनत किसी की भी हो
किसी-न-किसी का हित
करती ही है सदा
मेरी मेहनत से
नहीं होगा किसी का हित
ऐसा तो नहीं
मुझे छापने वाले
थोड़ा-बहुत तो कमा ही लेते हैं
मुझे छापकर
क़ीमत
पसीने की हो
या क़लम घिसाई की
कब मिलती है किसी को
मेहनत की लूट
हो रही है हर जगह
फिर मेरा लुटना
कुछ अर्थ नहीं रखता
कम-से-कम
मैं लुट रहा हूँ सहमति से
कम-से-कम
नाम होगा मेरा
ऐसा भ्रम तो है मुझे
मगर कुछ मजदूर तो ऐसे भी हैं
जो लुटते हैं
मजबूरी में
निश्चित है जिनका
गुमनाम मरना
दरअसल
मजदूर कोई भी हो
मजबूर तो होता ही है
चाहे वह ख्वाहिशों से हो
या फिर पापी पेट से
और फायदा उठाया जाता है सदा
हर मजदूर की मज़बूरी का
लुटना तो मुकद्दर है
हर मजदूर का ।
- दिलबाग विर्क
क़लम का मजदूर
मगर मजदूरी करता हूँ शौक से
शौक का
कोई मेहनताना देता है कहीं
मजदूर हूँ तो
वक़्त तो जाया करता ही हूँ
इस मजदूरी के लिए
सिर्फ़ वक़्त ही नहीं
पैसा भी
क्योंकि लिखता हूँ तो
चाहता हूँ छपना
और कौन छापता है किसी को
मुफ़्त में
जेब ढीली करके ही
खुद की लिखी पुस्तक
आती है अलमारी में
मेहनत किसी की भी हो
किसी-न-किसी का हित
करती ही है सदा
मेरी मेहनत से
नहीं होगा किसी का हित
ऐसा तो नहीं
मुझे छापने वाले
थोड़ा-बहुत तो कमा ही लेते हैं
मुझे छापकर
क़ीमत
पसीने की हो
या क़लम घिसाई की
कब मिलती है किसी को
मेहनत की लूट
हो रही है हर जगह
फिर मेरा लुटना
कुछ अर्थ नहीं रखता
कम-से-कम
मैं लुट रहा हूँ सहमति से
कम-से-कम
नाम होगा मेरा
ऐसा भ्रम तो है मुझे
मगर कुछ मजदूर तो ऐसे भी हैं
जो लुटते हैं
मजबूरी में
निश्चित है जिनका
गुमनाम मरना
दरअसल
मजदूर कोई भी हो
मजबूर तो होता ही है
चाहे वह ख्वाहिशों से हो
या फिर पापी पेट से
और फायदा उठाया जाता है सदा
हर मजदूर की मज़बूरी का
लुटना तो मुकद्दर है
हर मजदूर का ।
- दिलबाग विर्क
5 टिप्पणियां:
बढ़िया अभिव्यक्ति ! मंगलकामनाएं आपको
सटीक रचना
भावपूर्ण और प्रभावी रचना
सादर
सटीक चित्रण
बधाई
सटीक !
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