सम्मोहित हो जाना
नियति है भेड़ों की
कितने भी युग बदलें
ज्ञान का प्रसार हो चाहे जितना
भेड़ें भेड़ें ही रहती हैं
और भेड़िए भेड़िए
बदलते दौर के साथ
नहीं बदलती भेड़ें
मगर बदल जाते हैं भेड़िए
भेड़िए आजकल सिर्फ़ शिकार नहीं करते
पूरी भेड़ जाति पर कब्जा जमाने के लिए
वे पालते हैं कुछ भेड़ें
भेड़ियों की पालतु भेड़ें
चलती हैं भेड़ियों के इशारों पर
बहुत सी भेड़ें
बेशक पालतु नहीं भेड़ियों की
मगर वे भेड़ें तो हैं ही
उन्हें निभानी होती है
भेड़चाल की अपनी परम्परा ।
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दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
भेड़- भेड़िए ....और परम्परा ...
बहुत सुन्दर तुलनात्मक अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया..कुछ बदलते हैं कुछ वैसे ही रहते हैं...
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