क़समें खाकर
खून के ख़त लिखकर
किए गए हों जो वादे
सिर्फ़ वही वादे नहीं होते
ख़ामोशी के साथ
आँखों ही आँखों में
होते हैं बहुत से वादे
निभाने वाले
निभाते हैं अक्सर
आँखों से किए वायदे
मुकरने वाले मुकर जाते हैं
खून के ख़त लिखकर
अहमियत नहीं रखती
न कोई क़सम
न खून की स्याही
महत्त्वपूर्ण होती है
दिल की प्रतिबद्धता |
दिलबागसिंह विर्क
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7 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही लिखा..नििभाने वाले आंखों से किया वादाा भी निभाते हैं।
जी बिलकुल सही है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-05-2016) को "अगर तू है, तो कहाँ है" (चर्चा अंक-2349) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 2 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
कड़वी सच्चाई वयां करती वेहतरीन रचना। मुझे बहुत अच्छी लगी।
दिल की प्रतिबध्दता पढें।
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