हमारी दुआओं का हो नहीं रहा कुछ असर
खुदा है तो खुदा बन, क्यों बनता है पत्थर |
महौले-दहशत कब तक रहेगा जिंदगी में
बड़ा बेचैन हैं दिल, बड़ी परेशान है नजर |
देकर सब कुछ, अब छीन रही खुशियाँ
ऐ तकदीर, तू मुझसे ऐसा मजाक न कर |
यहाँ मैं रहूँ वो जगह सराए से कम नहीं
कीमत वसूल रही है दौलत, छीनकर घर |
दौरे-दहशत में अब सूझता कुछ भी नहीं
किस राह चलूँ मैं, कौन-सा है मेरा सफर |
बेबसी का अहसास तो ' विर्क ' उनसे पूछो
समेटते-समेटते गया जिनका सब कुछ बिखर |
दिलबाग सिंह विर्क
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सांझा संग्रह - 100 कदम
प्रकाशक - हिन्द युग्म
संपादक - अंजू चौधरी और मुकेश सिन्हा
3 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया !
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-10-2016) के चर्चा मंच "जुनून के पीछे भी झांकें" (चर्चा अंक-2488) पर भी होगी!
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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