बाँहे फैलाए तुझे , बिटिया रही पुकार
तुम जालिम बनना नहीं , मांगे बस ये प्यार |
निश्छल , मोहक , पाक है , बेटी की मुस्कान
भूलें हमको गम सभी , जाएँ जीत जहान |
क्यों मारो तुम गर्भ में , बिटिया घर की शान
ये चिड़िया-सी चहककर , करती दूर थकान |
बिटिया कोहेनूर है , फैला रही प्रकाश
धरती है जन्नत बनी , पुलकित है आकाश |
तुम बेटी के जन्म पर , होना नहीं उदास
गले मिले जब दौडकर , मिट जाते सब त्रास |
दिलबाग विर्क
5 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर रचना
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता" (चर्चा अंक 4310) (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना।
बाँहे फैलाए तुझे,बिटिया रही पुकार
तुम जालिम बनना नहीं,मांगे बस ये प्यार|
खूबसूरत संदेश देती बहुत ही प्यारी रचना
वाह!बहुत सुंदर सर।
सादर
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