एक तरफ हैं
वे लोग
जो जला रहे हैं देश को
जाति के नाम पर
धर्म के नाम पर
भाषा के नाम पर
दूसरी तरफ हैं वे लोग
जो जला तो नहीं रहे देश को
मगर वे देख रहे हैं तमाशा
चुपचाप बैठकर
तीसरी तरह के लोग भी हैं
जो न जला रहे हैं देश को
न बचा रहे हैं
वे बस बहस कर रहे हैं
ऊंगली उठा रहे हैं
इस्तीफा मांग रहे हैं
इस देश पर अपना हक़
जताते हैं सब
मगर दिखता नहीं कोई
देश को बचाने वाला
आखिर ये देश किसका है ?
दिलबागसिंह विर्क
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3 टिप्पणियां:
बहुत अहम सवाल ! पर किसका ध्यान जाता है इस बात पर ?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-09-2017) को "सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (चर्चा अंक 2714) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज के हालात देख कर सबसे बड़ा सवाल मन में यहीं आता हैं कि यह देश हैं किसका? बहुत ही उचित सवाल...
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