ये मुझसे कैसी बेहूदा ख़्वाहिश हुई
मुहब्बत दिल के लिए आतिश हुई।
ढूँढ़ो, कहीं से आशिक़ों को ढूँढो
ख़ूने-जिगर की अगर फ़रमाइश हुई।
सुबह तक तो मौसम बिल्कुल साफ़ था
कब बादल घिरे और कब बारिश हुई।
बेवफ़ाई गुनाह नहीं, बस यही सोचकर
न हमसे किसी अदालत में नालिश हुई।
दुश्मनों के इशारे पर चले दोस्त
मेरे ख़िलाफ़ ये कैसी साज़िश हुई।
कुंदन बनकर निकला हौसला मेरा
जब-जब ‘विर्क’ इसकी आज़माइश हुई।
दिलबागसिंह विर्क
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