मज़ा आने लगा है जीने में।
मैकदे की तरफ़ भेजा था जिसने
बुराई दिखती है अब उसे पीने में।
हवाओं का रुख देखा नहीं था
क़सूर निकालते हैं सफ़ीने में।
रुत बदली दिल का मिज़ाज देखकर
आग लगी है सावन के महीने में।
उतारकर सब नग, मुहब्बत पहनो
देखो कितना दम है इस नगीने में।
जीने लायक़ सब कुछ है यहाँ पर
क्या ढूँढ़ रहे हो ‘विर्क’ दफ़ीने में।
दिलबागसिंह विर्क
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दिलबागसिंह विर्क
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6 टिप्पणियां:
सच प्यार के नगीने में बड़ा दम होता है
बहुत सुन्दर
खूबसूरत गज़ल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-10-2017) को
"ज़िन्दगी इक खूबसूरत ख़्वाब है" (चर्चा अंक 2771)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह्ह्ह्ह....।शानदार गज़ल।
बहुत सुन्दर
खूबसूरत गज़ल
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