जले का इलाज शमादानों के पास नहीं
ग़मों का हिसाब दीवानों के पास नहीं।
बेवफ़ाई, बेहयाई ले बैठी है सबको
ख़ुशी की दौलत इंसानों के पास नहीं।
सुकूं मिला तो मिलेगा अपनों के पास
न ढूँढ़ो इसे, यह बेगानों के पास नहीं।
आशिक़ों के काम की चीज़ है, वहीं देखो
ये दिल होता हुक्मरानों के पास नहीं।
मुल्क बेचकर घर भरते रहते हैं अपना
शर्मो-हया सियासतदानों के पास नहीं ।
छूट चुके हैं जो तीर, लगेंगे निशाने पर
कोई इलाज अब कमानों के पास नहीं।
ज़िंदगी की उलझनों में उलझते चले गए
इनका हल ‘विर्क’ नादानों के पास नहीं।
दिलबागसिंह विर्क
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3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-11-2017) को
"भरा हुआ है दोष हमारे ग्वालों में" (चर्चा अंक 2777)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शानदार गजल
वाह्ह्ह....शानदार गज़ल👌
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