चाहतों के सफ़र में हुआ अंजाम याद आया
जो हो न सका मेरा, मुझे वो मुक़ाम याद आया।
भुलाने से भी भूलते नहीं तेरे सितम मुझको
जब भी मिला ज़ख़्म कोई, तेरा नाम याद आया।
सूख चुके आँखों के सागर को मौसमे-बारिश में
मुहब्बत में मिला अश्कों का इनाम याद आया ।
सरे-बाज़ार तमाशा देखने आई भीड़ देख
हर मोड़ पर मिलने वाला सलाम याद आया।
किसको फ़िक्र होनी थी मेरे बेगुनाह होने की
बस लगाया वही, जिसको जो इल्ज़ाम याद आया।
बदक़िस्मती से मैं क्या हारा, अब मुझे देखकर
हर किसी को ‘विर्क’ कोई-न-कोई काम याद आया।
दिलबागसिंह विर्क
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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