माना कि दिल तुम्हारा जला होगा
मगर इसमें भी कुछ तो मज़ा होगा।
इसे इंतिहा तक पहुँच जाने दो
फिर यह दर्द ख़ुद ही दवा होगा।
ज़माने के ग़म कुछ तो कम होंगे
जहां में गर किसी का भला होगा।
हल्के-हल्के सहलाना तुम ज़ख़्मों को
वक़्त पाकर दिल को हौसला होगा।
ये साँसें दग़ा दे जाएँगी तुम्हें
बता इससे बढ़कर और क्या होगा।
वफ़ा को इबादत की तरह मानो
होने दो ‘विर्क’ जो बेवफ़ा होगा।
दिलबागसिंह विर्क
******
5 टिप्पणियां:
बेहतरीन अल्फ़ाज़ों से सजी हुई रचना।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-03-2017) को "मन्दिर का उन्माद" (चर्चा अंक-2911) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
माना कि दिल तुम्हारा जला होगा
मगर इसमें भी कुछ तो मज़ा होगा।
इसे इंतिहा तक पहुँच जाने दो
फिर यह दर्द ख़ुद ही दवा होगा।
सुंदर !!!
सुंदर प्रस्तुति।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
एक टिप्पणी भेजें