बुधवार, मई 16, 2018

वो जाते-जाते दे गया मुझे दर्द इतना

उसका काम वो जानें, ये काम है अपना 
ज़ेहन में बसाना उसे और ख़्यालों में रखना। 

उम्र भर लगा रहा मैं उसको समेटने में 
वो जाते-जाते दे गया मुझे दर्द इतना। 

उसके लिए आँखों ने दिन-रात बहाए अश्क 
मेरे पागल दिल ने, देखा था एक सपना ।

तुम इन्हें हमसफ़र मानने की भूल न करो 
लोगों की फ़ितरत है, दो क़दम साथ चलना। 

तेरी याद दिलाता है तो मैं क्या करूँ 
आसमां पर रात को चाँद का चमकना । 

मेरी तरह तुम्हें भी हैरां कर गया होगा 
विर्क’ मेरा यूँ वक़्त के साँचे में ढलना। 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-05-2018) को "रिश्ते ना बदनाम करें" (चर्चा अंक-2964) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Meena sharma ने कहा…

हर एक शेर मन को छूता हुआ....

मन की वीणा ने कहा…

उम्दा हर शेर लाजवाब ।

~Sudha Singh Aprajita ~ ने कहा…

जबर्दस्त....

रश्मि शर्मा ने कहा…

हर शेर मन में उतरता हुआ

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

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