बुधवार, सितंबर 26, 2018

दर्दमंद भी होता है, दिल अगर आवारा होता है

जैसे माँ को अपना बच्चा बहुत दुलारा होता है 
ऐसे ही अपनों का दिया हर ज़ख़्म प्यारा होता है। 

ये सच है, ये यादें जलाती हैं तन-मन को मगर 
तन्हाइयों में अक्सर इनका ही सहारा होता है। 

क़त्ल करने के बाद दामन पाक नहीं रहता इसलिए 
ख़ुद कुछ नहीं करता, सितमगर का इशारा होता है। 

ये बात और है, तोड़ दिया जाता है बेरहमी से 
दर्दमंद भी होता है, दिल अगर आवारा होता है। 

दूर तक देखने वाली नज़र क़रीब देखती ही नहीं 
कई बार अपने क़दमों के पास ही किनारा होता है। 

ख़ुदा का नाम ले, खाली पेट सो जाना आसमां तले 
इस बेदर्द दुनिया में ‘विर्क’ ऐसे भी गुज़ारा होता है।

दिलबागसिंह विर्क 
****** 

11 टिप्‍पणियां:

Abhilasha ने कहा…

बेहतरीन सृजन आदरणीय

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-09-2018) को "आओ पेड़ लगायें हम" (चर्चा अंक-3108) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Rohitas Ghorela ने कहा…

बेहतरीन
कदमों के पास ही किनारा होता है
वाह

अनीता सैनी ने कहा…

बेहतरीन रचना 👌

Sudha Devrani ने कहा…

लाजवाब रचना.....
वाह!!!

Anita ने कहा…

बहुत खूब !

जवाहर लाल सिंह ने कहा…

वाह वाह! क्या कहने!

मन की वीणा ने कहा…

बेहतरीन गजल सभी शेर एक से बढ़कर एक।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन धारा 377 के बाद धारा 497 की धार में बहता समाज : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर भावधारा

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