बुधवार, दिसंबर 19, 2018

कभी सोचा नहीं

कितना लंबा वफ़ा का रास्ता, कभी सोचा नहीं 
ज़ख़्म खाकर क्यों चलता रहा, कभी सोचा नहीं। 

दिल को चुप कराने के लिए तुझे बेवफ़ा कहा 
तू बेवफ़ा था या बा-वफ़ा, कभी सोचा नहीं। 

तेरी ख़ुशी माँगी है मैंने ख़ुदा से सुबहो-शाम 
असर किया कि ज़ाया गई दुआ, कभी सोचा नहीं। 

मुहब्बत की राह पर एक बार चलने के बाद 
क्या-क्या पीछे छूटता गया, कभी सोचा नहीं। 

गवारा नहीं ‘विर्क’ सितमगर के आगे झुकना 
कब तक साथ देगा हौसला, कभी सोचा नहीं। 

दिलबागसिंह विर्क 
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2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

shashi purwar ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर अरसार है

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