कितना लंबा वफ़ा का रास्ता, कभी सोचा नहीं
ज़ख़्म खाकर क्यों चलता रहा, कभी सोचा नहीं।
दिल को चुप कराने के लिए तुझे बेवफ़ा कहा
तू बेवफ़ा था या बा-वफ़ा, कभी सोचा नहीं।
तेरी ख़ुशी माँगी है मैंने ख़ुदा से सुबहो-शाम
असर किया कि ज़ाया गई दुआ, कभी सोचा नहीं।
मुहब्बत की राह पर एक बार चलने के बाद
क्या-क्या पीछे छूटता गया, कभी सोचा नहीं।
गवारा नहीं ‘विर्क’ सितमगर के आगे झुकना
कब तक साथ देगा हौसला, कभी सोचा नहीं।
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
बहुत खूब सुन्दर अरसार है
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