बताओ क्या करें, दर्द को कैसे दवा कहें
कुछ हैरत नहीं अगर ज़िन्दगी को सज़ा कहें।
मतलबपरस्त दुनिया में मक्कारी है, गद्दारी है
रिश्तों में कुछ भी ऐसा नहीं, जिसे वफ़ा कहें।
ज़मीं पर हो गई है, ख़ुदाओं की भरमार
ऐ ख़ुदा ! बता तो सही, अब तुझे क्या कहें।
समझ न आए, किसकी बात छेड़ें, छोड़ दें किसे
सब एक से हैं, क्यों किसी को बेमतलब बुरा कहें।
क़ातिल इरादों को वो रोज़ देता है अंजाम
तुम्हीं बताओ, अब किस-किस को हादसा कहें।
लोगों जैसे ही तुम हो, फिर गिला क्या करना
यूँ तो सोचते हैं ‘विर्क’ हम तुझे बेवफ़ा कहें।
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दिलबागसिंह विर्क
13 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 3 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1266 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत ख़ूब 👌
बहुत खूब.... आदरणीय!
वाह बहुत सुन्दर ! न कुछ कहते हुए भी सभी कुछ कह दिया ! बहुत तीखी तल्ख़ एवं सटीक अभिव्यक्ति !
यथार्थ के धरातल पर सार्थक फसाना।
बहुत सुन्दर
ज़मीं पर हो गई है, ख़ुदाओं की भरमार
ऐ ख़ुदा ! बता तो सही, अब तुझे क्या कहें।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर, सटीक ....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-01-2019) को "वक़्त पर वार" (चर्चा अंक-3206) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाज़वाब गज़ल सर..हर बंध शानदार है👌
समझ न आए, किसकी बात छेड़ें, छोड़ दें किसे
सब एक से हैं, क्यों किसी को बेमतलब बुरा कहें।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर ।
वाह
बहुत सुंदर और भावपूर्ण
बताओ क्या करें, दर्द को कैसे दवा कहें
कुछ हैरत नहीं अगर ज़िन्दगी को सज़ा कहें।
बेहतरीन शायरी....
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