मुहब्बत के ज़ख़्मों का, पूछो न हिसाब मुझसे
रुक न पाएगा, फिर यादों का सैलाब मुझसे ।
पहले छीना था हमसे, प्यार जिस ज़ालिम ने
वो सितमगर, अब छीन रहा है शराब मुझसे ।
नक़ाबपोशी है बुरी, मानता हूँ मैं इसे, मगर
उतारा न गया, ख़ामोशियों का नक़ाब मुझसे ।
जिस दिन हुआ, फ़ैसला मेरी क़िस्मत का
उस दिन पूछे थे उसने, सवाल बेहिसाब मुझसे
बेवफ़ा हूँ मैं, ये सारी दुनिया कहती है
दिया न गया, कोई मुनासिब जवाब मुझसे ।
अँधेरे को समझना होगा नसीब अपना
नाराज़ है 'विर्क', प्यार का आफ़ताब मुझसे ।
दिलबागसिंह विर्क