रविवार, दिसंबर 19, 2010

अग़ज़ल - 1

प्यार-मुहब्बत के फरिश्तों का हमजुबां होना 
सब गुनाहों से बुरा है दिल में अरमां होना |

अहसास की आँखों से देखी हैं रुस्वाइयाँ 
महज़ इत्तफाक नहीं दिल का परेशां होना |

नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह 
जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना |

गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो 
मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना |

न जाने क्यों खुदा होना चाहते हैं लोग
काफी होता है एक इंसां का इंसां होना |

जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह 
क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना |

दिलबाग विर्क 
* * * * *

6 टिप्‍पणियां:

udaya veer singh ने कहा…

विर्क जी, तहे दिल से शुक्रिया ,कभी कभी मिलती हैं ऐसी रचनाएँ पढ़ने को ,--
जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह
क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना
गजल की हर पंक्तियाँ अपना बड़प्पन बयां करती हुयी
बहुत सुंदर . शुभकामनायें जी /

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो
मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना .

बहुत सुन्दर

डॉ0 विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ ने कहा…

bahut sundar!!

रंजना ने कहा…

नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह
जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना .

kya khoob कही ....बस, वाह...वाह...वाह !!!

एक से बढ़कर एक सभी शेर मन को छू लेने वाले...

बहुत ही सुन्दर रचना.....

बेनामी ने कहा…

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