गतांक से आगे
यह अत्याचार
जिसे न्याय की संज्ञा मिली
कोई सोचने की जहमत उठाएगा
किन परिस्थितियों में मिला .
न्याय उसे दिया जाता है
जो न्याय मांगने आए
न कि
घर-घर जाकर
दरवाजे पर दस्तक देकर
यह कहा जाता है कि
दरवाज़ा खोलो
हम न्याय के नाम पर
तुम्हारी मनोकामनाएं पूर्ण करने आए हैं .
राम का न्याय ऐसा ही तो था .
उस साधारण जन ने ,
लांछन लगाने वाले व्यक्ति ने
राजसभा में जाकर यह नहीं कहा था
कि सीता अपवित्र है
और कोई भी अपवित्र औरत
नहीं हो सकती महारानी
इसलिए इसे देश निकाला देकर
आप न्याय करें ,
बल्कि उसने तो
अपनी पत्नी से झगड़ते वक्त
सीता के चरित्र के सम्बन्ध में
अपनी सोच रखी थी
उसकी सोच लांछन तो हो सकती है
न्याय प्राप्त करने की अपील नहीं .
हाँ , न्याय करना था तो
काफी था यह
कि सज़ा न दी जाती
उस साधारण जन को
क्योंकि सज़ा देने का अर्थ होता
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को छीनना
जो कदापि उचित न था ,
लेकिन इसके लिए
उचित न था
किसी निर्दोष को दंडित करना भी .
राम ने किया
यह अनुचित कार्य भी
शायद वह
वाहवाही लूटना चाहता होगा
सबको संतुष्ट करके
लेकिन क्या वह सबको संतुष्ट कर पाया ?
क्या सबको संतुष्ट किया जा सकता है ?
क्या सबको संतुष्ट किया जाना चाहिए ?
नहीं ,
सबको संतुष्ट करने के लिए
किसी निर्दोष को
दोषी सिद्ध करना
कदापि उचित नहीं .
राम ने ऐसा करके
प्रसिद्धि तो हासिल कर ली
न्यायप्रिय शासक के रूप में
लेकिन वह
न्याय नहीं कर पाया .
{ क्रमश: }
* * * * *
12 टिप्पणियां:
भाई विर्क जी राम ने राज धर्म का पालन किया था यह जानते हुये कि सीता निर्दोष हैं ।
बेहतरीन ।
बहुत सही लिखा है ....
बधाई !
आपकी इस सोच को सलाम ...आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा ...
बिलकुल अपनी पत्नि से न्याय नही कर पाये राम। अच्छी रचना।
लोगों ने माना कि राज धर्म का पालन किया ...पर मुझे लगता है कि अपने अधिकार का अन्यायपूर्ण प्रयोग किया ..
पुनः आकलन के लिए प्रेरित करती रचना....
बहुत सुन्दर व्याख्या तत्कालीन न्याय-व्यवस्था की
लेकिन क्या वह सबको संतुष्ट कर पाया ?
क्या सबको संतुष्ट किया जा सकता है ?
क्या सबको संतुष्ट किया जाना चाहिए ?
नहीं ,
विर्क जी... सुन्दर भाव हैं.बधाई ..परन्तु
" न्याय उसे दिया जाता है
जो न्याय मांगने आए
न कि
घर-घर जाकर
दरवाजे पर दस्तक देकर "...
--शायद आप यह नहीं जानते कि न्याय घर जाकर भी दिया जाता है..माँगने पर न्याय मिला तो क्या मिला ---आजकल भी कोर्ट , सुप्रीम कोर्ट स्वयं संज्ञान लेकर मुकदमा स्थापित करती है..जैसा कि अभी हाल में ही ..बाबा रामदेव पर लाठी चार्ज के मामले में हुआ....
---साहित्य में ..इसको 'तथ्य-त्रुटि' कहा जाता है ..जो नहीं होनी चाहिए...
--यह प्राय: भावातिरेक में बह कर लिखने से होता है...
नहीं ,
सबको संतुष्ट करने के लिए
किसी निर्दोष को
दोषी सिद्ध करना
कदापि उचित नहीं .
राम ने ऐसा करके
प्रसिद्धि तो हासिल कर ली
न्यायप्रिय शासक के रूप में
लेकिन वह
न्याय नहीं कर पाया .
...bahut badiya prasangik vichar... aabhar!
उपयोगी लेखन!
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