बुधवार, अगस्त 24, 2011

अगज़ल - 24

कभी हौंसले ने मारा है , कभी लाचारी ने मारा है
 दरअसल हमें दो कश्तियों की सवारी ने मारा है ।

तिनकों से बनाना आशियाना क्या गलती न थी
फिर कैसे कहें , मुहब्बत की चिंगारी ने मारा है ।

अक्सर बदनसीबी छीन लेती है जिन्दगी की खुशबू 
ये तो एक वहम है कि शिकार को शिकारी ने मारा है ।

कोई माने न माने इसे मगर कडवा सच है ये
बेवफाओं  के  शहर  में  वफादारी  ने  मारा  है ।

फिर कौन सी हैरत भरी बात हुई अगर इस जमाने में
इन्सां के पुजारी को , पत्थर  के  पुजारी ने मारा है ।

एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले 
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है ।

दिलबाग विर्क
* * * * *

16 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

फिर कौन सी हैरत भरी बात हुई अगर इस जमाने में
इन्सां के पुजारी को, पत्थर के पुजारी ने मारा है.
क्या बात है. वहद् विडंबना पर यह बहुत बड़ी टिप्पणी. बढ़िया.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल के आशआर पेश किये हैं आपने।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

'एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है'

कया बात है...बहुत ख़ूब

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अक्सर बदनसीबी छीन लेती है जिन्दगी की खुशबू
ये तो एक वहम है कि शिकार को शिकारी ने मारा है.

Nice .

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

'एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है'

कया बात है...बहुत ख़ूब

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

तिनकों से बनाना आशियाना क्या गलती न थी
फिर कैसे कहें , मुहब्बत की चिंगारी ने मारा है .

बेहतरीन गज़ल.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत खूब !!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह सच में बहुत ही खूब

शारदा अरोरा ने कहा…

maja aaya padh kar ...achchhi lagi .

Shabad shabad ने कहा…

अक्सर बदनसीबी छीन लेती है जिन्दगी की खुशबू
ये तो एक वहम है कि शिकार को शिकारी ने मारा है.
bahut sundar !

ZEAL ने कहा…

एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है...

shaandaar ghazal-badhaii

.

prerna argal ने कहा…

आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

दो कश्ती में सवारी करना मारता ही है

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है.

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

इन्सां के पुजारी को , पत्थर के पुजारी ने मारा है ....

बहुत गहरे अशआर....
सादर बधाई...

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