सोमवार, अगस्त 01, 2011

लघुकथा - 4

                       सरकारी नौकरी                      
'' घर नहीं चलना , टाइम हो चुका है .'' - मेरे साथी ने मुझसे कहा . मैंने इस कार्यालय में आज ही ज्वाइन किया था .शायद इसीलिए उसने मुझे याद दिलाना चाहा था .
'' मेरी घड़ी पर तो अभी दस मिनट बाकी हैं .'' - मैंने घड़ी दिखाते हुए कहा .
'' वो तो मेरी घड़ी पर भी हैं ."
'' फिर ? ''
'' हम तो ऑफिस की घड़ी के हिसाब से चलेंगे .'' - उसने ऑफिस की घडी की तरफ इशारा किया .
'' लेकिन आए तो हम अपनी घडी के मुताबिक थे .''
'' हाँ , यही तो सरकारी नौकरी है .'' - उसने हंसते हुए कहा और ' देर से आना जल्दी जाना ' गुनगुनाते हुए वह बाहर की तरफ लपका , मैं भी अपना सामान समेटने लगा .

                 * * * * *

11 टिप्‍पणियां:

ASHOK BAJAJ ने कहा…

ਲਾਜਵਾਬ .

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सही...यही तो सरकारी नौकरी है...इसीलिए तो देश का कल्याण हो रहा है

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह रे सरकारी नौकरी का टाइम टेबल

vidhya ने कहा…

bahut kub
sarkari

रविकर ने कहा…

भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||

http://charchamanch.blogspot.com/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यही तो सरकारी नौकरी है.. :(

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

क्या गणित है....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत कुछ कह दिया आपने तो इस लघुकथा में!
अपनी घड़ी जिन्दाबाद!

Dorothy ने कहा…

सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

ZEAL ने कहा…

A bitter truth !

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सार्थक चिंतन।

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कम्‍प्‍यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्‍या है....

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