रविवार, अक्तूबर 30, 2011

अग़ज़ल - 28

माना कि तेरी जुदाई से गए थे बिखर से हम 
 नामुमकिन तो था मगर, संभल गए फिर से हम । 

 दोनों  में  रहा  वो  इस  दिल  के  क़रीब  फिर 
 वस्ल  को  कैसे  अच्छा  कहें  हिज्र  से  हम ।

 एक  यही  अमानत  तो  बची  है  प्यार  की 
 परेशां  क्यों  होंगे  दर्द - ए- जिगर  से  हम  ।

 अपने  दम  पर  हासिल  करेंगे  हर  मुकाम 
 लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम ।

खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर 
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम ।

चलना शौक़ था या मजबूरी, पता नहीं 
कर न पाए दोस्ती ' विर्क ' शिखर से हम । 

दिलबाग विर्क
                          * * * * *                           

16 टिप्‍पणियां:

POOJA... ने कहा…

खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम.
waah... behatareen...
bahit khoob kaha...

Sunil Kumar ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.
बहुत खुबसूरत, क्या बात है, दाद तो कुबूल करनी ही होगी......

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.

खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम.

वाह बहुत सुन्दर ...ज़िंदगी इसी हौसले से चलती है ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.
वाह विर्क जी... उम्दा गज़ल....
सादर बधाई...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.

वाह !!! क्या ही उम्दा और अ(सली)गज़ल है.दिल बाग-बाग हो गया.

सिफर से शुरु ये सफर हो सुहाना.
शिखर क्या है,चाँद और सूरज पे जाना.
बिखरो सबा में तो खुश्बू-सा बिखरो
अमानत सहेजो,यही है खजाना.

Amit Chandra ने कहा…

sare sher dad ke kabil.behtarin gazal.

Urmi ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.
खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Pallavi saxena ने कहा…

खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम.
चलना शौक़ था या मजबूरी , पता नहीं
मगर कर न पाए दोस्ती ' विर्क ' शिखर से हम.
वाह वाह!!!! क्या बात काही है आपने बहुत खूब...
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है जहाँ पोस्ट बड़ी ज़रूर है किन्तु आपकी राय की जरूरत है धन्यवाद....

Kailash Sharma ने कहा…

खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम.

.....बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अशआरों के साथ प्रस्तुत की गई बढ़िया ग़ज़ल!
शुभकामनाएँ!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.

SHAANDAR SHER........

चंदन ने कहा…

वाह वाह बुलंद शेर...
बहुत खूब!

Jeevan Pushp ने कहा…

हर शेर उम्दा...
बहुत सुन्दर ...
आभार आपका ..
आपके ब्लॉग पे पहली बार आना हुआ !
सदस्य बन रहा हूँ
आपका मेरे ब्लॉग पे बेसब्री से इन्तेजार रहेगा ..
www.mknilu.blogspot.com

palash ने कहा…

बेहतरीन ..........

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम.
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बढ़िया है, बढ़िया है.

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