खुशकिस्मत लोगों की हसीं मजलिस में शामिल नहीं हैं हम ।
न बढ़ाओ इस ओर अपनी कश्तियाँ साहिल नहीं हैं हम ।
मालूम है हमें सूखे दरख्तों पर फिर बहार आती नहीं
उम्मीदों के सहारे जिएँ , इतने जाहिल नहीं हैं हम ।
कौन छुपाएगा हाल मेरा इस जमाने की निगाहों से
कोई वकील नहीं हमारा, किसी के मुवक्किल नहीं हैं हम ।
अक्सर सोचा तो करते हैं , उठें कोई तूफां बनके
मगर सब लोग कहते हैं, इरादों में मुस्तकिल नहीं हैं हम ।
ये लम्बी तन्हाइयां मेरी , बन चुकी हैं मेरा मुकद्दर
कोई काबिल नहीं हमारे , किसी के काबिल नहीं हैं हम ।
हालत थे ऐसे '' विर्क '' हम इंसां होकर भी इंसां न बने
औरों की बात क्या करनी, अब खुद के मुकाबिल नहीं हैं हम
न बढ़ाओ इस ओर अपनी कश्तियाँ साहिल नहीं हैं हम ।
मालूम है हमें सूखे दरख्तों पर फिर बहार आती नहीं
उम्मीदों के सहारे जिएँ , इतने जाहिल नहीं हैं हम ।
कौन छुपाएगा हाल मेरा इस जमाने की निगाहों से
कोई वकील नहीं हमारा, किसी के मुवक्किल नहीं हैं हम ।
अक्सर सोचा तो करते हैं , उठें कोई तूफां बनके
मगर सब लोग कहते हैं, इरादों में मुस्तकिल नहीं हैं हम ।
ये लम्बी तन्हाइयां मेरी , बन चुकी हैं मेरा मुकद्दर
कोई काबिल नहीं हमारे , किसी के काबिल नहीं हैं हम ।
हालत थे ऐसे '' विर्क '' हम इंसां होकर भी इंसां न बने
औरों की बात क्या करनी, अब खुद के मुकाबिल नहीं हैं हम
* * * * *
8 टिप्पणियां:
औरों की बात क्या करनी, अब खुद के मुकाबिल नहीं हैं हम
गज़ल खूबसूरत है ..पर खुद के हौसले पस्त नहीं होने चाहिए ..
ये लम्बी तन्हाइयां मेरी , बन चुकी हैं मेरा मुकद्दर
कोई काबिल नहीं हमारे , किसी के काबिल नहीं हैं हम ।
दिल को छू गई पंक्ति..बहुत बहुत धन्यवाद
"मालूम है हमें सूखे दरख्तों पर फिर बहार आती नहीं
उम्मीदों के सहारे जिएँ , इतने जाहिल नहीं हैं हम ।"
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सुनो साथियों समय एक दिन एसी करवट बदलेगा !
तुच्छ नीव का पत्थर उठकर शिखरों को पलटेगा !!
आज अगर यह अन्धकार है फिर से रह ना सकेगा !
खून हमारा पीने वाला फिर से जी ना सकेगा !!
गूजेंगे फिर से घर घर में ..जीवन के वे मधुमय गान ..!
आज ना जाने कहाँ खो गए , जीवन के वे मधुमय गान !!
--Mahesh Sharma (Chankya S)
मालूम है हमें सूखे दरख्तों पर फिर बहार आती नहीं
उम्मीदों के सहारे जिएँ , इतने जाहिल नहीं हैं हम
behtareen
बहुत उम्दा प्रस्तुति विर्क जी ।
मेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
हालत थे ऐसे '' विर्क '' हम इंसां होकर भी इंसां न बने
औरों की बात क्या करनी, अब खुद के मुकाबिल नहीं हैं हम
शानदार पोस्ट .
अत्यन्त निराशावादी और खेदजनक प्रस्तुति। ऐसी मानसिकता अनुकूल नहीं है-न अपने लिए न औरों के।
अक्सर सोचा तो करते हैं , उठें कोई तूफां बनके
मगर सब लोग कहते हैं, इरादों में मुस्तकिल नहीं हैं हम ।
बहुत खूब!!!!!!
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