जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।
10 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बढ़िया....
सार्थक हायेकु.
सादर.
सार्थक संतुलित अपने उद्देश्य में सफल ......शुभकामनायें
बहुत सुन्दर और सार्थक.......शुभकामनायें
जीवन देना
जब वश में नहीं
जीवहत्या क्यों ?
सार्थक प्रस्तुति,..भावपूर्ण हाइकू ...
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १५ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
कितनी क्रूरता भरी होती होगी उनमें जिनके हाथों जीव हत्या होती है.... शर्मनाक.
sarthak haiku...
image bahut darawani hai...
bahut bedard hai ye jiv hatyare....
वाह बहुत खूब
जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।
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