शनिवार, मई 12, 2012

जीवहत्या क्यों ?( हाइकु )

कस्तूरी होती 
अपने ही भीतर 
ढूंढें बाहर ।
जीवन देना 
जब वश में नहीं 
जीवहत्या क्यों ?

मेहनत को 
मानते कर्मशील 
अन्य  भाग्य को ।

अहमियत 
हार-जीत की नहीं 
कोशिश की है ।

****************

10 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया....
सार्थक हायेकु.

सादर.

udaya veer singh ने कहा…

सार्थक संतुलित अपने उद्देश्य में सफल ......शुभकामनायें

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक.......शुभकामनायें

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जीवन देना
जब वश में नहीं
जीवहत्या क्यों ?

सार्थक प्रस्तुति,..भावपूर्ण हाइकू ...

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १५ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |

ZEAL ने कहा…

कितनी क्रूरता भरी होती होगी उनमें जिनके हाथों जीव हत्या होती है.... शर्मनाक.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

sarthak haiku...
image bahut darawani hai...
bahut bedard hai ye jiv hatyare....

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।

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