चुप रहूँ या कुछ कहूं
दुविधा सदा रही है सामने ।
चुप रहने का अर्थ हैं -
अन्याय को होते देखना
जो खामोश सहमति ही है
अन्याय की ।
कुछ कहने का अर्थ है -
मुसीबतें मोल लेना
अपना चैन खोना ।
शायद इसीलिए
कहा जाता है जिन्दगी को
दो धारी तलवार
जो जख्म देती है
आहत करती है ।
दुर्भाग्यवश
हर आदमी
जख्मी है
आहत है
इस जिन्दगी के
आघातों से ।
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6 टिप्पणियां:
अक्सर ऐसी दुविधा से दो-चार होना पड़ता है...
सारी समस्या की जड़ है-अपने ऊपर लोड लेना।
बहुत बढ़िया रचना
बहुत बार जिंदगी में हम ऐसे मकाम पर पंहुचते हैं जहां ऐसी उहापोह की स्थिति में मन फंस के रह जाता है मन के भावों को अच्छे शब्द दिए हैं सुन्दर रचना
यही है ज़िन्दगी
जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष हैं ....ऐसी ही हैं हम सबकी जिंदगी
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