बुधवार, मई 02, 2012

जिंदगी के आघात ( कविता )

चुप रहूँ या कुछ कहूं 
दुविधा सदा रही है सामने ।

चुप रहने का अर्थ हैं -
अन्याय को होते देखना 
जो खामोश सहमति ही है 
अन्याय की ।

कुछ कहने का अर्थ है -
मुसीबतें मोल लेना 
अपना चैन खोना ।

शायद इसीलिए 
कहा जाता है जिन्दगी को 
दो धारी तलवार 
जो जख्म देती है 
आहत करती है ।

दुर्भाग्यवश 
हर आदमी 
जख्मी है 
आहत है 
इस जिन्दगी के 
आघातों से ।

********************

6 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

अक्सर ऐसी दुविधा से दो-चार होना पड़ता है...

कुमार राधारमण ने कहा…

सारी समस्या की जड़ है-अपने ऊपर लोड लेना।

udaya veer singh ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत बार जिंदगी में हम ऐसे मकाम पर पंहुचते हैं जहां ऐसी उहापोह की स्थिति में मन फंस के रह जाता है मन के भावों को अच्छे शब्द दिए हैं सुन्दर रचना

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

यही है ज़िन्दगी

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष हैं ....ऐसी ही हैं हम सबकी जिंदगी

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...