और क्या मिलना है , यादों को संजोने से
बहल जाता है दिल, घड़ी-दो-घड़ी रोने से ।
अब हुआ अहसास, ठोकर लग ही जाती है
जरूरत से कुछ ज्यादा वफादार होने से ।
सागर की खामोशियों पर एतबार न करना
सकूं मिलता है इसे कश्तियाँ डूबोने से ।
फरेबी दुनिया छोडती ही नहीं फरेब को
दिल साफ़ हुआ नहीं करता जिस्म धोने से ।
जरूरी तो है इंसानियत को निभाना मगर
फुर्सत कहाँ है रिवाजों का बोझ ढोने से ।
काश ! छोटी-सी बात समझ लेती दुनिया
कुछ भी न होना अच्छा है बुरा होने से ।
कशिश है, कसक है मगर विर्क रुसवाई नहीं
निराला ही मजा है सफर में मंजिल खोने से ।
दिलबाग विर्क
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5 टिप्पणियां:
सागर की खामोशियों पर एतबार न करना
सकूं मिलता है इसे कश्तियाँ डूबोने से ।
bahut sundar bhav liye huye
बहुत खूब....
बेहतरीन शेर...
अनु
जरूरी तो है इंसानियत को निभाना मगर
फुर्सत कहाँ है रिवाजों का बोझ ढोने से ।
Khoob Kahi....
वाह दिलबाग सर वाह सभी के सभी अशआर माशाल्लाह कमाल के कहें हैं, बेहद लाजवाब ग़ज़ल हेतु दिली दाद के साथ-साथ ढेरों दाद कुबूलें. सादर
वाह वाह !!! बेहद लाजवाब ग़ज़ल ,,,,,बधाई दिलबागजी,,,,,
WELCOME TO MY recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
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