जीना नहीं आया यारो, मुझको जीना नहीं आया
जिन्दगी क्या थी ? दो घूँट जहर, पीना नहीं आया ।
जमीं के गुलशन और दिल के चमन में फर्क है यही
टूटा जो दिल तो फिर बहार का महीना नहीं आया ।
खून जलाना पड़ता है यहाँ दो वक्त की रोटी के लिए
वो क्या जाने असलियत जिसे पसीना नहीं आया ।
करीने-कयास के सहारे कब तक मिलती कामयाबी
हमें हुनर से कामयाब होने का करीना नहीं आया ।
उनकी फितरत में थी बेवफाई , वो कर गए लेकिन
ये मेरी खता है, चाक जिगर को सीना नहीं आया ।
खतरे ही खतरे हैं ' विर्क ' इस मुहब्बत के दरिया में
इस सफर से सलामत दिल का सफीना नहीं आया ।
दिलबाग विर्क
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करीने-कियास --- अटकल से ठीक होना
करीना ---- ढंग
चाक --- विदीर्ण , फटा हुआ
सफीना --- नौका, नाव
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4 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति |आशा
गहन ...बढ़िया प्रस्तुति ...
खतरे ही खतरे हैं ' विर्क ' इस मुहब्बत के दरिया में
इस सफर से सलामत दिल का सफीना नहीं आया ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....
bahut achhi panktiyaan hain
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