बुधवार, अगस्त 07, 2013

मुझे अपनी बात कहनी है

गुनाहों की दास्तां बन चुकी है खबर भी
शर्मिंदगी से जमीं में गड़ रही नजर भी । 

हालात बदलने की कोशिश तो करें हम   
इस चुप्पी से रोएगी धरा भी, अब्र भी ।

सच कहना है मुझे बुलंद आवाज में
इसके लिए मंजूर है मुझको जहर भी ।

कत्ल आदमियत का रोज कर रहे हैं लोग
शामिल हैं इसमें सब, गाँव भी, शहर भी ।

फैसले का इंतजार तुम्हें क्योंकर है
मुजरिम के हक में है मुंसिफ भी, सद्र भी ।

मुझे अपनी बात कहनी है हर हाल में
बह्र में भी कहता हूँ ' विर्क ' बेबह्र भी ।
                           ********

4 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत....

Mahesh Barmate "Maahi" ने कहा…

हमेशा की तरह... बहुत खूब :)

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत बढ़ियाँ बुलंद आवाज..:-)

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बात कहने के लिए यही बुलंदी चाहिए...बहुत सुन्दर !!

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