गुनाहों की दास्तां बन चुकी है खबर भी
शर्मिंदगी से जमीं में गड़ रही नजर भी ।
हालात बदलने की कोशिश तो करें हम
इस चुप्पी से रोएगी धरा भी, अब्र भी ।
सच कहना है मुझे बुलंद आवाज में
इसके लिए मंजूर है मुझको जहर भी ।
कत्ल आदमियत का रोज कर रहे हैं लोग
शामिल हैं इसमें सब, गाँव भी, शहर भी ।
फैसले का इंतजार तुम्हें क्योंकर है
मुजरिम के हक में है मुंसिफ भी, सद्र भी ।
मुझे अपनी बात कहनी है हर हाल में
बह्र में भी कहता हूँ ' विर्क ' बेबह्र भी ।
********
शर्मिंदगी से जमीं में गड़ रही नजर भी ।
हालात बदलने की कोशिश तो करें हम
इस चुप्पी से रोएगी धरा भी, अब्र भी ।
सच कहना है मुझे बुलंद आवाज में
इसके लिए मंजूर है मुझको जहर भी ।
कत्ल आदमियत का रोज कर रहे हैं लोग
शामिल हैं इसमें सब, गाँव भी, शहर भी ।
फैसले का इंतजार तुम्हें क्योंकर है
मुजरिम के हक में है मुंसिफ भी, सद्र भी ।
मुझे अपनी बात कहनी है हर हाल में
बह्र में भी कहता हूँ ' विर्क ' बेबह्र भी ।
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4 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत....
हमेशा की तरह... बहुत खूब :)
बहुत बढ़ियाँ बुलंद आवाज..:-)
बात कहने के लिए यही बुलंदी चाहिए...बहुत सुन्दर !!
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