जिसने प्रीत निभाई है ।
ऊँचाई देती है वो
भीतर जो गहराई है ।
जब से मैंने इश्क किया
मुझ पर मस्ती छाई है ।
चाहे लफ्ज अढाई है ।
सीने से लगकर यारो
भर देना जो खाई है ।
भीड़ रहे इस धरती पर
चोटी पर तन्हाई है ।
निकली है मेरे दिल से
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2 टिप्पणियां:
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
ऊँचाई देती है वो
भीतर जो गहराई है ।
बहुत बढिया।
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