न चाहा बेवफा की याद में यूँ आँख तर करना
करे मजबूर दिल इतना कि पड़ता है मगर करना ।
मुहब्बत चीज कैसी है, न जीने दे, न मरने दे
सकूँ छीने, करे बेबस, इसे कहते असर करना ।
पुरानी बात छोड़ो, कुछ नया चाहे सदा दुनिया
रहे ताउम्र सबको याद, कुछ ऐसा नजर करना ।
यही सच है, यहाँ घर पत्थरों के, लोग भी पत्थर
हमारा फर्ज है, हालात कुछ तो बेहतर करना ।
किनारे की तमन्ना कश्तियों को किसलिए होगी
इधर से वे उधर जाती , मुकद्दर है सफर करना ।
बड़े गहरे दबे हैं ' विर्क ', झूठी जिन्दगी के सच
तुझे मालूम हो जाएँ अगर, सबको खबर करना ।
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2 टिप्पणियां:
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !
नई पोस्ट तुम
बहुत लाजवाब और उम्दा ग़ज़ल।
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मित्रवर!
प्रतिदिन एक गज़ल प्रकाशित करते रहिए।
ताकि हमको पूर पुस्तक को पढ़ने का आनन्द मिल सके।
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