सोमवार, दिसंबर 02, 2013

प्यार का इल्जाम रहने दे

                     
       सिखाना छोड़, होंठों पर उसी का नाम रहने दे
       यही है जिन्दगी अब, हाथ में तू जाम रहने दे ।

       अदा होगी नहीं कीमत कभी मशहूर होने की
       यही अच्छा रहेगा, तू मुझे गुमनाम रहने दे ।

       मझे मालूम है, रूसवा करेंगें प्यार के चर्चे
       लगे प्यारा, मेरे सिर प्यार का इल्जाम रहने दे ।

       शरीफों की शराफत देख ली मैंने यहाँ यारो
       नहीं मैं साथ उनके, तुम मुझे बदनाम रहने दे ।

       तुझे जो चाहिए ले ले, बचे जो छोड़ देना वो
       मेरे हिस्से सवेरा जो न हो, तो शाम रहने दे ।

       मुझे तो राह का'बे का लगे महबूब की गलियाँ
       वहाँ पर ' विर्क ' जाना रोज हो, कुछ काम रहने दे ।

                         ************

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (05-12-2013) को "जीवन के रंग" चर्चा -1452
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दिलबाग जी !बधाई
नई पोस्ट वो दूल्हा....
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