किस बात की दे रहा सज़ा मुझे
है क्या गुनाह मेरा, बता मुझे ।
हिम्मत नहीं अब और सहने की
रुक भी जा, ऐ दर्द न सता मुझे ।
या ख़ुदा ! अदना-सा इंसान हूँ
टूट जाऊँगा न आजमा मुझे ।
क्यों चुप रहा उसकी तौहीन देखकर
ये पूछती है मेरी वफ़ा मुझे ।
आखिर ये बेनूरी तो छटे
किन्हीं बहानों से बहला मुझे ।
एक अनजाना - सा खौफ हावी है
अब क्या कहूँ ' विर्क ' हुआ क्या मुझे ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - प्रतीक्षा रहेगी
संपादक - जयसिंह अलवरी
प्रकाशक - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा { कर्नाटक }
प्रकाशन वर्ष - मार्च 2007
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7 टिप्पणियां:
Bahut khoob... umdaa hai har sher...!!
हिम्मत नहीं अब और सहने की
रुक भी जा, ऐ दर्द न सता मुझे ।
सुन्दर रचना...
ये हर्फ़ नहीं फ़कत दिल के वर्क हैं--वर्क-दर-वर्क
ये हर्फ़ नहीं फ़कत दिल के वर्क हैं--वर्क-दर-वर्क
ये हर्फ़ नहीं फ़कत दिल के वर्क हैं--वर्क-दर-वर्क
हिम्मत नहीं अब और सहने की
रुक भी जा, ऐ दर्द न सता मुझे ।
सुन्दर रचना...!!
वाह बहुत सुंदर।
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