बुधवार, अगस्त 06, 2014

अकेला चाँद ही नहीं दाग़दार

बनने  को  तैयार हूँ  मैं  कर्जदार 
दे सकता है तो दे ख़ुशी उधार |
हर शख्स के दिल में दाग़ है यहाँ 
अकेला चाँद ही नहीं दाग़दार |

दहशत के बादल हर वक्त छाए रहे 
इस मुल्क में कब था मौसम खुशगवार |

ज़िन्दगी की हकीकत है बस यही 
चंद खुशियाँ और गम बेशुमार |

आदमियों के धंधों को देखकर 
हो रही है आदमियत शर्मसार |

कोई हल नहीं निकले है मसलों का 
पुकार सके तो ' विर्क ' खुदा को पुकार |

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - प्रतीक्षा रहेगी 
संपादक - जयसिंह अलवरी 
प्रकाशक - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा { कर्नाटक }
प्रकाशन वर्ष - मार्च 2007 
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8 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !
सावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?

Rewa Tibrewal ने कहा…

sundar sarthak gazal

Pratibha Verma ने कहा…

बेहतरीन ...

Pratibha Verma ने कहा…

बेहतरीन ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल।

Malhotra vimmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गजल

Asha Joglekar ने कहा…

ज़िन्दगी की हकीकत है बस यही
चंद खुशियाँ और गम बेशुमार |

हर शेर खूबसूरत पर ये भा गया।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...

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