मंगलवार, अगस्त 26, 2014

तेरा नाम लेकर धड़कती है धड़कन

गर सुलझा सके तो सुलझा मेरी उलझन 
तेरी याद को मैं दोस्त कहूँ या दुश्मन |

गम तो थे मगर ये सब थे छोटे - छोटे 
कैसी ये जवानी है, छीन लिया बचपन |

तुझे भूल जाना मेरे वश में कब है 
तेरा नाम लेकर धड़कती है धड़कन | 

बिखर गई सारी उम्मीदें देखते-देखते 
कोई काम आ न सका मेरा दीवानापन |

यूं तो पत्थरों में भी ख़ुदा रहता है 
अपने पास गर हो देखने वाला मन |

पल-पल बदलें हैं ' विर्क ' हालात यहाँ 
सहरा लगती है ये जिंदगी कभी गुलशन | 

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - शून्य से शिखर तक 
संपादक - आचार्य शिवनारायण देवांगन ' आस '
प्रकाशन - महिमा प्रकाशन , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
प्रकाशन वर्ष - 2007

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत उम्दा ग़ज़ल. कुछ शेर मन को छू गए. बधाई.

Parmeshwari Choudhary ने कहा…

आपकी ग़ज़ल दिल से निकली होने का अहसास लिए है। सुन्दर

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

Murari Pareek ने कहा…

sundar rachna

Malhotra vimmi ने कहा…

बेहतरीन गजल।
दिल को छू गई ।

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