बेवफाई तेरी का ये अंजाम है
गूँजता महफ़िलों में, मेरा नाम है ।
क्या मिला पूछते हो, सुनो तुम जरा
इश्क़ का अश्क़ औ' दर्द ईनाम है ।
लो, कई चेहरों से उठेगा नक़ाब
आ गया अब मेरे हाथ में जाम है ।
हर तरफ दौर है नफरतों का यहाँ
प्यार का लाज़मी आज पैगाम है ।
बात कहना मेरा काम था, कर दिया
अब नियम ढूँढना आपका काम है ।
मान जाओ इसे, है हकीकत यही
बद नहीं ' विर्क ', वो सिर्फ बदनाम है ।
दिलबाग विर्क
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7 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
(वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो कमेंट देने में सुविधा रहेगी)
असुविधा के लिए खेद है लेकिन वर्ड वेरिफिकेशन तो नहीं लगाया हुआ था
सुन्दर गजल |
बहुत सुंदर !
Waah..Lajawaab gazal ....
बहुत बढिया।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-10-2020) को "एहसास के गुँचे" (चर्चा अंक - 3844) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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