देखना खुद से होता है
सुना दूसरों को जाता है
दूसरे क्या सुनाते हैं आपको
क्या सुनने को
करते हैं विवश
यह हाथ में नहीं आपके
बहुत से शकुनी
बहुत से दुर्योधन
बहुत से धृतराष्ट्र
अक्सर इतना शोर मचाते हैं
कि दब जाती है आवाज़
न सिर्फ़
भीष्मों की
विदुरों की
पांडवों की
अपितु
कृष्ण तक की
कानून की देवी भी
चूक जाती है न्याय से
धोखा खा जाती है
दलीलों से
दरअसल
गांधारी-सा दर्शन है उसका
बाँध रखी है उसने भी
आँख पर पट्टी
देखने से परहेज है उसे
वह सिर्फ सुनती है
उसे यकीन है
कानों सुने उस सच पर
जो सदैव कमतर होता है
आँखों देखे सच से |
दिलबाग विर्क
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