बुधवार, अप्रैल 15, 2015

दोस्तों के हाथ में खंजर मिला

धूप-छाँव-सा रंग बदलता मुकद्दर मिला 
ख़ुशी मिली, ख़ुशी के खो जाने का डर मिला । 
दुश्मनों से मुकाबिले की सोचते रहे हम 
और इधर दोस्तों के हाथ में खंजर मिला । 

यूँ तो की है तरक्की मेरे मुल्क ने बहुत 
मगर सोच में डूबा हर गाँव, हर शहर मिला । 

नज़रों ने दिया है किस क़द्र धोखा मुझे 
चाँद-सा चेहरा उनका, दिल पत्थर मिला । 

हालातों की क्या कहें, बद से बदतर मिले 
ऊपर से बेग़ैरत, बेवफ़ा बशर मिला । 

किसी मंज़िल पर पहुँचना नसीब में न था 
और चलने को 'विर्क' रोज़ नया सफ़र मिला । 

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से 

6 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

किसी मंज़िल पर पहुँचना नसीब में न था
और चलने को 'विर्क' रोज़ नया सफ़र मिला ।
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

कविता रावत ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कविता रावत ने कहा…

यूँ तो की है तरक्की मेरे मुल्क ने बहुत
मगर सोच में डूबा हर गाँव, हर शहर मिला ।
..बहुत खूब!..
बहुत बढ़िया गजल

Malhotra vimmi ने कहा…

वाह बहुत खूबसूरत गजल।

Unknown ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,.आपका ब्लॉग देखा मैने कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

Unknown ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,.आपका ब्लॉग देखा मैने कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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