मुझसे मुँह मोड़कर, तू अगर दूसरी तरफ़ चला नहीं होता
तो कभी भी हमारे दरम्याँ इतना फ़ासिला नहीं होता ।
ये बात और है, उन्हें शौक है बंदूक उठाने का वरना
मिल-बैठकर हल न निकले, ऐसा कोई मसला नहीं होता।
कोई आएगा साथ तुम्हारे, इसका इंतज़ार क्यों है ?
सच्चाई की राह चलने वालों का क़ाफ़िला नहीं होता ।
ज़रूरत नहीं किसी बड़े फ़लसफ़े की, बस काफ़ी है ये
बुरा न करना किसी का, गर तुझसे भला नहीं होता ।
कोशिश तो करके देखो, हालात बदलते देर नहीं लगती
अँधेरा है तब तक, जब तक कोई चिराग़ जला नहीं होता।
मुखौटों के दौर में ‘विर्क’ बड़ा मुश्किल है एतबार करना
बदले-बदले नज़र आएँ, जिनका कुछ भी बदला नहीं होता।
दिलबागसिंह विर्क
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5 टिप्पणियां:
ज़रूरत नहीं किसी बड़े फ़लसफ़े की, बस काफ़ी है ये
बुरा .न करना किसी का, गर तुझसे भला नहीं होता
बेहतरीन !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-02-2017) को (चर्चा अंक-2874) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन
कोई आएगा साथ तुम्हारे, इसका इंतज़ार क्यों है ?
सच्चाई की राह चलने वालों का क़ाफ़िला नहीं होता ।
वाह वाह. यथार्थ परक सुंदर रचना. लाजवाब पंक्तियाँ
Lajawab
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