लहू जिगर का इसे पिलाए रखना
कोई आग दिल में जलाए रखना।
हर ज़ख़्म ज़माने को दिखाते नहीं
कुछ राज़ सीने में छुपाए रखना ।
बेचैनियों से बचना है तो बस
हर पल ख़ुद को उलझाए रखना।
नया ज़ख़्म खाना नहीं चाहते हो तो
पुराने ज़ख़्मों को सहलाए रखना।
ये ख़ुशियाँ तो कल साथ छोड़ देंगी
ग़मों को अपना हमदम बनाए रखना।
इंसानियत की मौत पर बहाने हैं
‘विर्क’ चंद अश्क तुम बचाए रखना।
दिलबागसिंह विर्क
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7 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 19 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1098 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
वाह!
वाह!!लाजवाब!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-07-2018) को "दिशाहीन राजनीति" (चर्चा अंक-3038) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कोई आग दिल में जलाये रखना
बेचनियों से ख़ुद को बचाना है तो हर पल
ख़ुद को उलझायें रखना । बहुत ख़ूब
कोई आग दिल में जलायें रखना
बैचेनियों से बचना हाई तो हर पल ख़ुद को उलझाये रखना
बहुत ख़ूब
बहुत सुन्दर ..
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