क्यों इतना बेचैन है , क्यों इतना बेकरार है
बेदाग होकर भी हम हुए किसी काम के नहीं
रौशन है उससे रात , जो चाँद दागदार है |
वफा का इम्तिहान देने की मोहलत तो दे मुझे
फिर मुझको बेवफा कहने का तू हकदार है |
शोहरत पाकर लोग अक्सर बदल जाते हैं
पता नहीं इसमें शोहरत का कितना खुमार है |
कौन बा-वफा , कौन बेवफा , ये मसला छोटा नहीं
अपनी निगाहों में तो हर कोई वफादार है |
चाहत को अंजाम देने का हुनर नहीं आता
वरना ' विर्क ' हर शख्स ख़ुशी का तलबगार है |
दिलबाग विर्क
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8 टिप्पणियां:
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@-वफा का इम्तिहान देने की मोहलत तो दे मुझे
फिर मुझको बेवफा कहने का तू हकदार है।
बेहद शानदार ग़ज़ल , अक्षर-अक्षर सत्य लिखा है ।
बहुत पसंद आयी।
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आदरणीय zeal जी
सदर प्रणाम
आपकी टिप्पणियाँ उत्साह वर्धक हैं . इनसे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है . इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ . आशा है आपका स्नेह बना रहेगा .
बेदाग होकर भी हम हुए किसी काम के नहीं
रौशन है उससे रात , जो चाँद दागदार है .
बहुत ही खूबसूरत है ग़ज़ल
बहुत ही खूबसूरत है ग़ज़ल
बहुत ही खूबसूरत है ग़ज़ल
मैं तो पहले दिन से ही आपके गजलों का दीवाना हूँ दिलबाग जी
वफा का इम्तिहान देने की मोहलत तो दे मुझे
फिर मुझको बेवफा कहने का तू हकदार है........वाह बहुत खूब
बेवफाई करने वाले ...वफ़ा की कीमत क्या जाने ...
thanks
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