तुम हर बार छुपा जाते हो , प्यार जताते - जताते
हम हर बार जता जाते हैं , प्यार छुपाते - छुपाते ।
अभी तो दिल ने चहकने का इरादा किया था फिर
क्यों चुप हुए लब तुम्हारे , हमें बुलाते - बुलाते ।
आखिर कोई फैसला तो हो नजरों के खेल का
परेशां हो गए हैं दिल पर जख्म खाते -खाते ।
क्या कहें हम अपनी इस खस्ताहाल तकदीर को
खो चुके हैं कई मंजिलें बस पाते - पाते ।
ये तुम्हारा तिलिस्म था या हमारी बेबसी
सांसों में सजा बैठे , हम तुम्हें भुलाते - भुलाते ।
हो सके तो ' विर्क ' जल्दी से जिन्दगी में आना
कहीं बहुत देर न हो जाए , तुम्हारे आते - आते ।
दिलबाग विर्क
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3 टिप्पणियां:
बहुत मीठी सी ग़ज़ल है विर्क साहिब.
सलाम
रचना भावप्रधान लिखी है आपने!
सराहनीय लेखन के लिए बधाई एवं
उज्ज्वल भविष्य की मंगल-कामनाएं।
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सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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