शुक्रवार, मार्च 11, 2011

कविता - 6

    तुझे रुकना होगा  
      ऐ खुदा 
      तेरी सृष्टि 
      तेरी ही कोप दृष्टी से 
      हो रही है ध्वस्त 
      कभी वसुंधरा पर 
      हरियाली लहलहाने में 
      मदद करने वाला नील गगन 
      अनावृष्टि से 
      या फिर अतिवृष्टि से 
      नीरव कर देता है जन जीवन को 
      तो कभी खुद वसुंधरा 
      अपनी गोद में फैली 
      खूबसूरत दुनिया को 
      मिला लेती है मिटटी में 
      ऐसा क्यों होता है ?
      यह पूछने का हक तो नहीं हमें 
      क्योंकि तेरा हर कृत्य 
      मानव के हित में होगा 
      ऐसा विश्वास है सबको 
      और इसी श्रद्धा के चलते 
      आशा है जन -जन को 
      रचयिता 
      विध्वंसक नहीं हो सकता 
      मगर सब आशाएं 
      सब उम्मीदें हों परिपूर्ण 
      यह भी संभव नहीं 
      फिर भी 
      तुझे रुकना होगा 
      विध्वंस का कारण होने से  
      क्योंकि 
      विध्वंस करने वाले तो 
      काफी हैं 
      इसी वसुंधरा के सुपुत्र ही 
      और अगर तू भी 
      हो गया साथ इनके 
      तो कौन बचा पाएगा 
      बर्बादियों के सिलसिले से ?
      कौन रोक पाएगा 
      विनाश के तांडव को ?

             * * * * *

9 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

एक सार्थक प्रश्न के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! हर एक शब्द दिल को छू गयी! बेहतरीन प्रस्तुती!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खुदा की कोप दृष्टि भी शायद इस लिए है क्यों की मानव अपनी मनमानी कर रहा है ...अच्छी रचना

Kunwar Kusumesh ने कहा…

विध्वंस करने वाले तो
काफी हैं
इसी वसुंधरा के सुपुत्र ही

सब कुछ तो इन्हीं पंक्तियों में है.

Manoj Kumar ने कहा…

so nice, sir.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

vidhwans ka karan hamesha paroksh me hota hai, aur prabhu zimmedaar banaya jata hai. jo kuch hua use dekh to khuda bhi jaar jaar roya

Atul Shrivastava ने कहा…

सवाल अच्‍छा है पर जवाब हम इंसानों के पास ही है।
यकीनन प्रकृति से छेडछाड की हमारी प्रवित्ति के चलते ऐसे विध्‍वंस होते हैं।
बहरहाल अच्‍छी रचना।
शुभकामनाएं आपको।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

bahut bhavpoorn sarthak prastuti.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

antas ki akulta ki prahavi abhivykti.
sunar evam sarthak rachna.

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