जमीं पर आकर हो जाते हैं पत्थर ।
हक मांगने की आदत छोडनी होगी
अगर चाहते हो तुम ,बने प्यारा-सा घर ।
बहुत गहरे हैं गमों के ये अँधेरे
छोटी-सी जिन्दगी और लम्बा सफर ।
चिरागे-उम्मीद को तुम जलाए रखना
ये बुरा वक्त भी कभी जाएगा गुजर ।
मुसाफिर हैं हम , चलना हमारा काम
मालूम नहीं हमें , है मंजिल किधर ।
फिर गम कैसा ' विर्क , बाज़ी हारने का
कब जीता जाता है जिन्दगी का समर ।
दिलबाग विर्क
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समर - युद्ध
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7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर,
कविता टैग का प्रयोग किया करें
क्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
@ भाई मेरे दिलबाग !
आपने तो कर दिया मेरा दिल बाग बाग !!
बुरा वक़्त भी गुज़र ही जाता है ...सुन्दर पंक्तियाँ ।
चिरागे-उम्मीद को तुम जलाए रखना
ये बुरा वक्त भी कभी जाएगा गुजर|
बहुत खूबसूरत रचना| धन्यवाद्|
'चिरागे उम्मीद को तुम जलाए रखना
ये बुरा वक्त भी कभी जायेगा गुज़र '
उम्दा शेर .....सभी शेर बेहतरीन
मुसाफिर हैं हम , चलना हमारा काम
मालूम नहीं हमें , है मंजिल किधर .
वाह , इस सोच के साथ तो मंजिल का मिलना तय है.
Behtareen...vaah! vaah! yu hi likhate rahiye..shubhkamna..
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