भुला दे अश्कों को , ला होंठों पे मुस्कान
जिन्दादिली ही है , जिन्दगी की पहचान ।
मुहब्बत से गुरेज़ है लोगों को , तभी तो
घर बन नहीं पाते, ये पत्थरों के मकान ।
बाँट दो सब खुशियाँ , हैं जो भी आगोश में
कब रुका करती हैं बहारें , ऐ बागबान ।
बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है
फिर किस सोच में डूबे हो, क्यों हो परेशान ?
दामन थामकर हौंसले का , बस खड़े रहो
मौसम बदलते ही खिले हैं फूल वहाँ पर
चंद रोज़ पहले तक , जो गुलशन थे वीरान ।
बस हैवानियत को मारने की देर है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान ।
दिलबाग विर्क
* * * * *
9 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
बस हैवानियत को मारने की देर है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान .
waah
बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है फिर किस सोच में डूबे हो , क्यों हो परेशान ?
खुबसूरत शेर कहीं यह आपसे ताल्लुक तो नहीं रखता काश ऐसा ना हो
मुहब्बत से गुरेज़ है लोगों को , तभी तो
घर बन नहीं पाते , ये पत्थरों के मकान .
Beautiful creation . Enjoyed reading .
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हैप्पी होली।
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
बाँट दो सब खुशियाँ , हैं जो भी आगोश में
कब रुका करती हैं बहारें , ऐ बागबान ...
बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.
होली की हार्दिक शुभकामनायें
बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है
फिर किस सोच में डूबे हो , क्यों हो परेशान ?
दामन थामकर हौंसले का , बस खड़े रहो
लेने दो तुम , इस जिन्दगी को इम्तिहान
बहुत खूब ...अच्छी गज़ल
बस हैवानियत को मारने की देर है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान .
bilkul sach
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