मंगलवार, मार्च 15, 2011

अगज़ल - 13

भुला दे अश्कों को , ला होंठों पे मुस्कान 
जिन्दादिली ही है , जिन्दगी की पहचान । 

मुहब्बत से गुरेज़ है लोगों को , तभी तो 
घर बन नहीं पाते, ये पत्थरों के मकान । 

बाँट दो सब खुशियाँ , हैं जो भी आगोश में 
कब  रुका  करती  हैं  बहारें , ऐ  बागबान  । 

बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है 
फिर किस सोच में डूबे हो, क्यों हो परेशान ?

दामन थामकर हौंसले का , बस खड़े रहो
लेने दो तुम ,  इस जिन्दगी को इम्तिहान । 
मौसम बदलते ही खिले हैं फूल वहाँ पर 
चंद रोज़ पहले तक , जो गुलशन थे वीरान । 

बस  हैवानियत  को  मारने  की  देर  है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान । 

दिलबाग विर्क   
* * * * *

9 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बस हैवानियत को मारने की देर है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान .
waah

Sunil Kumar ने कहा…

बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है फिर किस सोच में डूबे हो , क्यों हो परेशान ?
खुबसूरत शेर कहीं यह आपसे ताल्लुक तो नहीं रखता काश ऐसा ना हो

ZEAL ने कहा…

मुहब्बत से गुरेज़ है लोगों को , तभी तो
घर बन नहीं पाते , ये पत्थरों के मकान .

Beautiful creation . Enjoyed reading .

.

मनोज कुमार ने कहा…

हैप्पी होली।

Urmi ने कहा…

आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बाँट दो सब खुशियाँ , हैं जो भी आगोश में
कब रुका करती हैं बहारें , ऐ बागबान ...

बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.

होली की हार्दिक शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेवफाई तो अब दस्तूर - ए - मुहब्बत है
फिर किस सोच में डूबे हो , क्यों हो परेशान ?
दामन थामकर हौंसले का , बस खड़े रहो
लेने दो तुम , इस जिन्दगी को इम्तिहान

बहुत खूब ...अच्छी गज़ल

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बस हैवानियत को मारने की देर है
खुदा हो जाता है ' विर्क ' अदना-सा इंसान .
bilkul sach

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