सोमवार, मार्च 21, 2011

लघुकथा - 2

         बैकडोर एंट्री                 
" यह बैकडोर व्यवस्था कहीं भी पीछा नहीं छोडती ."- बैंक में मेरे साथ ही लाइन में खड़े एक युवक ने पिछली खिड़की से राशि निकलवाकर जाते आदमी को देखकर कहा .
' कोई मजबूरी होगी .'- मैंने सहज भाव से कहा .
" तो क्या हम बेकार हैं जो घंटे भर से खड़े हैं ? "- उसने कहा .
' चलो वक्त का थोडा नुकसान है , सब्र करो .'- मैंने हौंसला बंधाते हुए कहा .
" अकेले वक्त का नहीं , यह व्यवस्था तो जिंदगियां भी बर्बाद करती है ."-उसकी आवाज़ में रोष था .
' वो कैसे ? '- मैंने पूछा .
" इसी व्यवस्था के कारण कुछ लोग नौकरियां पा जाते हैं तो कुछ गलियों की खाक छानने को मजबूर हो जाते हैं ."-उसने निराश होकर कहा .
' नौकरी में बैकडोर व्यवस्था ? '- मैंने हैरानी से पूछा .
" एडहोक , ठेका , गेस्ट आदि के नाम पर भर्ती बैकडोर एंट्री ही तो है ."
' कैसे ? '- मैंने पूछा .'
" यह नियुक्तियां स्थानीय अधिकारीयों द्वारा बिना मैरिट के की जाती हैं . इनमें सिफारिश और रिश्वत का बोलबाला अधिक होता है . पहुंच वाले नौकरी खरीद लेते हैं और हम जैसे गरीब और सामान्य लोग देखते रह जाते हैं ."-उसने रुआंसा होकर कहा .
' ये भर्ती नियमित तो नहीं होती .'- मैंने तर्क दिया .
" ठीक कहते हैं आप , परन्तु ये लोग यूनियन बनाकर सरकार पर दवाब डालते हैं और वोटों की राजनीति करने वाले नेता इन्हें स्थायी कर देते हैं ."- उसकी आवाज़ में मायूसी थी .
' अच्छा ! ऐसा भी होता है .'- मैं चौंका .
" ऐसा ही तो होता है मेरे महान देश में ."- उसने कटाक्ष किया . मैं उसकी आँखों में सिफारिश के अभाव और गरीबी के कारण नौकरी न खरीद पाने के दुःख और भारतीय समाज में प्रचलित बैकडोर एंट्री की व्यवस्था के प्रति आक्रोश को स्पष्ट देख रहा था .
                     * * * * *

14 टिप्‍पणियां:

  1. इस बैक डोर इंट्री से आधा से ज्यादा समाज त्रस्त है

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  2. इस बैक डोर इंट्री से आधा से ज्यादा समाज त्रस्त है
    sach kaha

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  3. कमाल की है ये बैक डोर एंट्री | धन्यवाद|

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  4. निसंदेह दुखद है यह व्यवस्था । बहुत से deserving लोग भुगत रहे हैं इसका खामियाजा।

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  5. बहुत ही अच्छे अंदाज में समस्या को उठाया है आपने बाबा रामदेव जैसे कुछ लोग लगे हैं। देखिए क्या कुछ तस्वीर बदलती है। उम्मीद ही जिंदगी है।

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  6. ये बैकडोर एंट्री सचमुच बहुत ही दुखद है...नौकरी खरीदने की औकात हर किसी की नहीं...
    बहुत ही सारगर्भित लाजवाब सृजन।

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  7. प्रचलित बैकडोर एंट्री की व्यवस्था को आइना दिखाती सार्थक रचना | बधाई दिलबाग जी |

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  8. " ऐसा ही तो होता है मेरे महान देश में ."-
    बहुत हद तक सच है।

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यहाँ तक पहुंचने के लिए आभार | आपके शब्द मेरे लिए बहुमूल्य हैं | - दिलबाग विर्क