गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

अगज़ल - 17

गगन का चाँद पहलू में बैठाने को 
बड़ा बेचैन है दिल तुम्हें पाने को ।

इसे कुछ मालूम नहीं दस्तूर-ए-इश्क 
कहे जो , कहने देना इस जमाने को ।

बड़ी पाकीज़ा होती है ये मुहब्बत 
क्योंकर शर्तें रखूं मैं आजमाने को ।

इरादा-ए-गुफ्तगू हो जब , देखूं दिल में 
सदा की क्या जरूरत , तुझे बुलाने को ।

खुदा दिल का यूं ही नाराज़ मत करना 
नाज़  जिंदगी  के  होते  हैं  उठाने  को ।

चुरा सकते हो अगर ' विर्क ' चुरा लेना 
कब कहा जाता चोरी , दिल चुराने को ।

दिलबाग विर्क
* * * * * 
                            सदा ---- आवाज़
                 * * * * *
                  

शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

कुंडलिया छंद -1

               कन्या भ्रूण हत्या                            
                       

बेटी मरती गर्भ में ,हम सब जिम्मेदार 
चुप्पी धारण की तभी ,होता अत्याचार .
होता अत्याचार , हुई  प्रताड़ित नारी 
वेदों का है देश  ,लगाते कलंक भारी .
कहत 'विर्क' कविराय , हो रही इससे हेठी 
कहलाओ इन्सान ,  मारते हो तुम बेटी .

                 * * * * *  
                        हेठी --- अपमान ,बेइज्जती 
                       * * * * *

शनिवार, अप्रैल 16, 2011

अगज़ल - 16

 ये लोग न जाने क्यों जहर पीने की बात करते हैं 
हम तो सब गम उठाकर भी जीने की बात करते हैं । 

एक नजर काफी है दोस्त-दुश्मन पहचानने के लिए 
वो तो नादां हैं,  जो साल- महीने की बात करते हैं । 

जख्म देना जिनका पेशा है, महफिलों में अक्सर वो 
हमदर्दी की खातिर, जख्मी सीने की बात करते हैं । 

हिन्दू-मुस्लमान हैं सब मगर इन्सां कोई नहीं  
कभी काशी, कभी मक्के-मदीने की बात करते हैं । 

गर दगेबाज़ नहीं हैं तो अनजान जरूर होंगे वो 
पत्थरों से भरकर दामन, जो नगीने की बात करते हैं । 

मेरी समझ से तो परे है, ये पागल दुनिया वाले 
मुहब्बत को छोडकर किस दफीने की बात करते हैं । 

वो लहू और तलवार की बात ले बैठते हैं ' विर्क '
जब भी हम मेहनत और पसीने की बात करते हैं । 

दिलबाग विर्क 
* * * * * 
                 जख्मी सीने --- घायल दिल 
                       दफीने --- जमीन में गड़ा धन 
    * * * * *   

मंगलवार, अप्रैल 12, 2011

हाइकु - 3

              आई बैसाखी                         
         
          लहलहाई 
          गेहूँ की वल्लरियाँ 
          जागे स्वप्न . 

          चहक उठा 
          किसान का चेहरा 
          आई बैसाखी .

          देखी फसल 
          नाचा मन मयूर 
          डाला भांगड़ा .

          जब मिलता 
          फल मेहनत का 
          दिल खिलता .

            * * * * *

          

शनिवार, अप्रैल 09, 2011

लघुकथा - 3


         आज का सच            
अध्यापक ने बच्चों को ईमानदार लकडहारा कहानी याद करने के लिए दी थी . अगले दिन कहानी सुनी जा रही थी . सुनाते वक्त एक बच्चे की जवान लडखड़ाई ." लकडहारा  ईमानदार आदमी था ", कहने की बजाए वह बोला -" ईमानदार आदमी लकडहारा था ."  
          अध्यापक सोच रहा है कि यही तो आज के वक्त का सच है कि ईमानदार आदमी लकडहारा ही है , अर्थात मजदूर है , गरीब है , बेबस है , मामूली आदमी है और जो भ्रष्ट है वह मालिक है , अमीर है , शहंशाह है , मजे में है .
       
                      * * * * *

सोमवार, अप्रैल 04, 2011

अगज़ल - 15

करके प्यार ख़ुशी के लिए दुआ न करना 
गले लगा लेना , गम को खफा न करना । 

हमदर्दी की मरहम , बन जाती है नश्तर 
इश्क के जख्मों पर कभी दवा न करना । 
मुबारिक कहना हर ढलती हुई शाम को 
अंधेरों के लिए किस्मत से गिला न करना । 

जुदाई  में  तुम चूम  लेना  तन्हाइयों  को 
प्यार भरी यादों को मगर तन्हा न करना । 

यादों की आग में मिटा देना हस्ती अपनी 
जीने के लिए बेवफाई से वफा न करना । 

जिसे दिल दिया हो गर वो पत्थर भी निकले 
तो ' विर्क ' उस पत्थर से भी दगा न करना । 

दिलबाग विर्क 
* * * * *
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