गगन का चाँद पहलू में बैठाने को
बड़ा बेचैन है दिल तुम्हें पाने को ।
इसे कुछ मालूम नहीं दस्तूर-ए-इश्क
कहे जो , कहने देना इस जमाने को ।
बड़ी पाकीज़ा होती है ये मुहब्बत
क्योंकर शर्तें रखूं मैं आजमाने को ।
इरादा-ए-गुफ्तगू हो जब , देखूं दिल में
सदा की क्या जरूरत , तुझे बुलाने को ।
खुदा दिल का यूं ही नाराज़ मत करना
नाज़ जिंदगी के होते हैं उठाने को ।
चुरा सकते हो अगर ' विर्क ' चुरा लेना
कब कहा जाता चोरी , दिल चुराने को ।
दिलबाग विर्क
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सदा ---- आवाज़
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